Tuesday, December 30, 2008

नया वर्ष है नव प्रभात है !


नया वर्ष है , नव प्रभात है
नयी उम्मीदे , नयी आश है
कुछ सपने , कुछ खवाब नए है
नयी है मंजिल , राह नयी है
हम सब को मिलकर चलना है
स्वपन सुनहरे सच करना है ।
पथ में कुछ मुस्किल तो होगी
कुछ बाधायें सरल न होगी
अधियारों में चलाना होगा
गम भी हमको सहना होगा
गीत नए फिर भी गढ़ना है
सवपन सुनहरे सच करना है ।
Yahi प्रार्थना रब से मेरी
आशाएं पूरी कर हम सब की
तुम्हे समर्पित कर्म हमारा
नव वर्ष का यह धेय हमारा
हम सब को मिलकर चलाना है
स्वपन सुनहरे सच करना है ।

Friday, December 19, 2008

मैंने प्यार किया !!


तुम जो भी हो मै नही जानता
मै तो केवल इतना जनता हूँ
की तुम मेरी सांसें हो , धड़कन हो ।
माना की तुम मुझसे बहुत दूर हो
किंतु तुम मेरे बहुत पास हो
जितना की मै ख़ुद नही ।
तुम बन चुकी हो यादें मेरी
बस गई हो दिल की बस्ती में ऐसे
की ढूढना चाहा तो ख़ुद खो गया उसी में ।
बस चाहत है तुमसे
की मिल जाओ मुझसे ऐसे
जैसे दो चाहत आत्माए हो ।
मैंने चाहा तुम्हे यह खुस्किस्मती है मेरी
मैंने चाहा क्या ?
ये नज़ारे तो खुदा ने बनाई ही है
की बस तुम्हे dekhata rhoo ।
तुम्हारे नजदीक रह के
कह न सका मै तुमसे
की किसी को चाहना
और चाहत का इजहार
न कर पाना ही शायद प्यार है
तो हां मैंने प्यार किया तुमसे , सिर्फ़ तुमसे ।

Saturday, November 29, 2008

मै शहीद कहलाऊंगा !!




मै मौत से नही डरता
मौत के खौफ से नही डरता
मगर मौत मुझे गाँधी , सुभाष की tarah chahiye
मुझे मौत आजाद , भगत सिंह की tarah चाहिए
मुझे मौत बलिदान , स्वाभिमान की चाहिए
मुझे मौत देश की खातिर चाहिए
मुझे मौत कारगिल की चाहिए
मुझे मौत मेजर उन्नी कृषण की tarah चाहिए
मुझे मौत हेमंत करकर , विजय सालसकर , अशोक की tarah चाहिए
मुझे मौत , ई वतन तेरे लिए चाहिए
मेरे वतन तेरे लिए मै लहू बहाऊंगा
गर मर भी गया तो मै शहीद कहलाऊंगा
मेरे वतन निराश न हो मै लौट के आऊंगा ।

सुन लो आताकियों , दुश्मनो
हर बार यही कहानी दुहराऊंगा
खाकर सिने पर हजारों गोलिया
तेरा नाम अपनी जमी से मिटाऊंगा
हर बार शांति का संदेश
सारे जहा में फैलाऊंगा
हर बार अपना प्राण देश की
आन ,मान और शान की खातिर लुटाऊंगा

Friday, October 10, 2008

काश ! इसे कोई समझाता !!


जीवन में है कितने बंधन
अब तक इसको समझ न पाया
मन करता रहता है क्रंदन
फिर भी है उसको अपनाया ।
द्वंद भरा यह कैसा जीवन
कभी हसता , कभी रुलाता
सब अपने है समझ न पाता
समझ अकेला मन अकुलाता ।
सारे बंधन मेरे अपने
बढ़ते जाते है क्यू सपने
दिवा स्वप्न अब थका रहे है
समय चल दिया बाती ढकने ।
कब यह बाती बुझ जायेगी
कब तक यह मन बहलायेगी
काश ! इसे कोई समझाता
मेरे मन को राह देखता ।

(This poem has been written by my father.
I Love this poem. Hope u will also love and like it )

Tuesday, October 7, 2008

कौन समझेगा मुझे !



कौन समझेगा मुझे
कौन मुझे प्यार देगा
जिस प्यार की तलाश
में हूँ बरसो से
क्या मुझे वो प्यार
कभी मिलेगा ।
इक धुंधली सी तस्वीर
है उसकी मेरे जेहन में
कब तक मै उसका
इन्तजार करूँ ।
कही वो मेरा
भरम तो नही
या है वो इक सच ।
ये खुदा अब तू
ही बता क्या
वो मेरे सामने आएगी ।
और अगर वो नही
आएगी तो उसकी
तस्वीर मेरे जेहन में
क्यो है और मै क्यों
उसके बारे में सोचता हूँ
अब तू ही बता -
कौन समझेगा मुझे
और कौन मुझे प्यार देगा ।

(यह कविता मेरे प्रिय मित्र चंद्र शेखर द्वारा लिखी गई है और मुझे
बहुत पसंद है , मुझे आशा है आप लोगो को भी पसंद आएगी )

Friday, October 3, 2008

तेरे लिए !


रातों को अक्सर
तारों के संग
तेरे लिए गीत
मैंने है गाया ।


तुम मेरी क्या हो !


तुम्हे क्या बताऊँ
की तुम मेरी क्या हो
मेरी हमसफ़र
तुम मेरी जीन्दगी हो ।
दुनिया की चाहत
की तुम वो परी हो
जिसे मैंने पूजा
तुम वो हँसी हो ।
तारों पे चलती तुम
हुस्ने कमल हो
जिसे मैंने गाया
तुम वो गजल हो ।
जिसे मैंने जन्मों से
माँगा था रब से
मेरी जा वो तुम हो
हां , तुम्ही हो ।


पूछो उनसे , जो अनाथ होते है !


खुशकिस्मत होते है वे लोग
जिनके मां-बाप होते है
पूछो उनसे -
जो अनाथ होते है ।
यदि कोई खुदा है
इस धरती पर
तो वो मां -बाप ही है
तुम चाहे जैसे भी हो
वो तुम्हारे साथ होते है ।
कैसे तुम रोओगे ?
किसी और के सामने
आंशूं बहाने और पोछने
वाले भी तो चाहिए जो
जो तुम्हारे साथ होते है ।

तेरा प्यार मेरी पूजा !



तूं जीत , जिन्दगी है
तू आश , रौशनी है
तेरा प्यार मेरी पूजा
तेरी चाह बंदगी है
मेरी शाम तुमसे रौशन
मेरी रात फिर खिली है ।

तुम क्या गयीं , मै खो गया !


तुम क्या गयीं
मै खो गया
जाने मुझे क्या हो गया ।
चलता रहा
राहों पे लेकिन
फिर भी कभी मै चल ना सका ।
जीता रहा
जीवन को हर पल
फिर भी कभी मै जी ना सका ।
सोया हूँ अक्सर
रातों को लेकिन
फिर भी कभी मै सो ना सका ।
तुम क्या गयीं
मै खो गया
जाने मुझे क्या हो गया .

Friday, September 26, 2008

तुम यदी आज कहो तो |



तेरे लबों की लाली को तुम
आज कहो तो जाम बना दूँ
तेरे फलक की बिंदिया को तुम
आज कहो तो चाँद बना दूँ
तेरे पायल की रुनझुन को तुम
आज कहो तो गीत बना दूँ

तेरे मचलते अरमानो को
आज कहो तो दुल्हन बना दूँ
तेरे नयन की गहराई को
आज कहो तो झील बना दूँ
तेरे उदासी के साए को
आज कहो तो उत्सव कर दूँ

तेरे जीवन के अंधियारे को
आज कहो तो उज्वल कर दूँ
तेरे अधूरे सपने को तुम
आज कहो तो पूरा कर दूँ

तुम यदि आज कहो तो मैं
पतझड़ को सावन कर दूँ
अमावास को पूनम कर दूँ
नदियों को सागर कर दूँ
सोला को सबनम कर दूँ
धरती को जन्नत कर दूँ
तुम यदि आज कहो तो
मैं तुम पर जीवन अर्पण कर दूँ

Tuesday, September 23, 2008

पलकें भीग जाती है !


मैंने तुम्हे आत्मा की उन गहराइयों
से प्यार किया है जहाँ मेरा मै खो जाता है
दुनिया का कोई भी ऐश्वर्य उसे छू नही पाता है
अलौकिक आनन्द का झरना मेरे ह्रदय में फूट पड़ता है ।
तुम्हे इतनी गहराइयों से चाहा की
मेरा अहंकार न जाने कहा खो जाता है
सच कहूं मेरी आत्मा मुक्त हो जाती है
जैसे दुनिया कही खो जाती है ।
तुझे प्यार कर के मेरी आंखों से आँशू छलक जाते है
मेरी दुनिया रंगीन हो जाती है
मेरा मन उमंग से नाच उठता है
सैकड़ों जूगनू जैसे मेरे आँगन में नृत्य करने लगते है
ऐसा लगता है जैसे बसंत आ जाए
जैसे अचानक हजारों फूल खिल जाए
मेरा ह्रदय तुम्हारी खुशबू से खिल उठता है
मेरा जीवन आनन्द के फूलों से महक उठता है
मेरा जीवन एक उत्सव बन जाता है , गीत बन जाता है
मेरी आँखें झील बन जाती है और पलकें भीग जाती है ।




तेरे नाम की डोर बंधी है



प्रीति नही है कुछ पल की ये
प्यास नही पलभर की
तेरे नाम की डोर बंधी है
प्राणों से जीवन भर की ।

कोई ना समझे हैं दिल की जुबां


इस जग में साथी किसको ख़बर है
कौन अधूरा है किसके बिना
किसी की कमी से जग सारा सूना
सारा जीवन रह जाता है सूना ।
हँसते हुए ख्वाब रोते है आंशूं
कोई ना समझे है दिल जुंबा
इस जग में साथी किसको ख़बर है
कौन अधूरा है किसके बिना ।
सांसे है सूनी , धड़कन है सूनी
जीवन है सूना किसी के बिना
इस जग में साथी किसको ख़बर है
कौन अधूरा है किसके बिना ।
राहें है सूनी , मंजिल है सूनी
खवाब अधूरा है किसी के बिना
जब भी है आया सावन का मौसम
नैना है बरसे किसी के बिना
इस जग में साथी किसको ख़बर है
कौन अधूरा है किसके बिना ।

Wednesday, September 17, 2008

दिल ने किया प्यार तुमसे !




मैंने नही प्यार तुमसे किया है
दिल ने किया प्यार तुमसे
मैंने तो दुनिया की बातें थी मानी
किसी की न माना इसी ने ।
मै तो कभी तेरे दर पे झुका ना
सजदा किया है इसी ने ।
मै तो अकड़ता रहा उमर भर
समर्पण किया है इसी ने ।
मै तो कंकड़ था राहों में जैसे
बस हीरा किया है इसी ने
तेरी मुहबत का अमृत पिला कर
मुझको जीवन दिया है इसी ने ।

खाली है दामन , कुछ ना पाया हूँ !


परछाई बनकर लुभाती रही है
खुशियाँ मुझको दौडाती रही है
कितना दौडा हूँ , कितना भागा हूँ
खाली है दामन , कुछ ना पाया हूँ ।

मेरी चाँद कैसी होगी !

कभी कभी मै सोचता हूँ

जब तुम घूंघट में होगी ,

तो कैसी होगी

मेरी चाँद , बिल्कुल मेरी कविता जैसी होगी ।

सिर्फ़ एक प्यास , तेरी आस !



तेरी यादों के सिवाय

कुछ भी नही मेंरे पास

सिर्फ़ एक प्यास

तेरी आस ।

प्यार ही होता है उसका खुदा !



जब कोई किसी को प्यार है करता

हर पल है जीता , हर पल है मरता

प्यार से बढ़कर कोई पूजा नही है

प्यार ही होता है उसका खुदा ।

माँ , मै तुमसे बहुत प्यार करता हूँ !



कई बार मै सोचता हूँ
की मै तुमसे कहूं -
की माँ मै तुमसे बहुत प्यार करता हूँ
पर मै तुमसे कभी तो नही
कह पाता हूँ ।
और शब्दों से शायद
मै कह भी नही पाऊंगा ,
शब्दों में सामर्थ्य ही नही है
भावों को व्यक्त कर पाने की ।
पर मै जब भी अकेला
भावों में डूबा
तेरे आशीष , ममता
और स्नेह की गर्माहट
को महसूस करता हूँ ,
तब न जाने कब
दो बूँद मोटी
पलकों से टपक जाते है
और वो ही कर पाते है
मेरे भावों को व्यक्त ,
और वो कहते है -
की "माँ " , मै तुमसे बहुत प्यार करता हूँ ।





Tuesday, September 16, 2008

तुमसे बड़ा कोई गम भी न रहा !



तू यदि सबसे बड़ी


खुशी थी मेरी


तो सच ये भी है


की तुमसे बड़ा


कोई गम भी न रहा ।


तेरा आँचल मै छू भी सका !


ऐसी तो कोई मजबूरी न थी

की मै कुछ कह भी न सका

जाने कौन सी हया थी आंखों में मेरी

की तेरा आंचल मै छू भी न सका ।

तुमसे मै बहुत दूर रहा !

मै तो तेरे साथ रहा

पल पल जीवन की तरह

फिर क्यू मुझे ऐसा लगा

की तुमसे मै बहुत दूर रहा ।

मै प्यासा ही रहा !

मै तो जीवन भर यूही

भटकता ही रहा

सागर मेरे पास था

और मै प्यासा ही रहा ।

तेरे पास आके रो लूँगा बहुत !

मै तो सोचा था की
तेरे पास आके रो लूँगा बहुत
तूने समझा क्या मुझे
मै कुछ समझ भी न सका

पहली बार मिला जब तुमसे !


पहली बार मिला जब तुमसे
लगा कोई अपना हो जैसे
लगा कोई सपना हो जैसे
पहली बार लगा था ऐसे
सांसो में खुशबू हो जैसे
पलकों में सपने हो जैसे
सीने में धड़कन हो जैसे
अंतर्मन महका हो जैसे
पहली बार लगा था ऐसे
धरती भी गाती हो जैसे
तारे भी झरते हो जैसे
कण कण में संगीत हो जैसे
पहली बार मिला जब तुमसे
लगा कोई अपना हो जैसे
लगा कोई सपना हो जैसे
पहली बार मिला जब तुमसे ........

Monday, September 1, 2008

तेरे लिए गीत लिखा !


आशूँ है मेरी आँखों में

एक स्याही की तरह

इन्ही आशूओं से मैंने

तेरे लिए गीत लिखा .

मेरा अपना हो न सका !


जीवन के अनजाने पथ पर
चाहा जो वो कर न सका
मेरा जीवन , मेरा सपना
मेरा अपना हो न सका .

साथी मेरे भूल ना जाना !


साथी मेरे भूल ना जाना
कुछ पल तो तेरे साथ रहा था
ऐसा क्यू लगता है मुझको
जन्मों से तेरे साथ रहा था ।
तेरे प्यार और अपने पन में
जीवन ऐसे बीत रहा था
जीवन ही सपना था या फिर
स्वपन सुनहरा देखा रहा था
साथी मेरे भूल ना जाना
कुछ पल तो तेरे साथ रहा था .........

अगर मिल गए हो तो फिर ना बिछड़ना !




कोई शिर्फ़ तेरे लिए गीत गाये
पलकों में तेरे ही स्वपन सजाये
अगर कोई ऐसा तुम्हें मिल जो जाए
तो पलकों से उसको न तुम दूर करना
मिलना न मिलना है किस्मत की बातें
अगर मिल गए हो तो फिर ना बिछड़ना ।

मै तो दर्द पुजारी हूँ !


तुम खुशियों की बात हो करते
मै तो दर्द पुजारी हूँ
तुम सावन की बात हो करते
मै तो पतझड़ का रही हूँ ।
ढूंढ़ रहे हो तुम खुशियाँ
लेकर के तुम शहनाई
तुम्हे मिलेगा कुछ भी नही
मैंने काँटों से है नीड़ बनाई .
अश्रू जहा की सम्पति है
पीडा ही जहा पर वैभव है
ऐसा देश रहा है मेरा
दर्द जहाँ पर गौरव है ।
मरुथल ही जहाँ पवित्र भूमि है
दर्द के ही मन्दिर है जहाँ
पीडा के ही प्रेम गीत है
ऐसा ही अपना है जहाँ ।





कभी भी न भूल पाया !


तेरे चेहरे पर खिली लाली ने क्या गजब ढाया
जब भी जिधर देखा तेरा चेहरा ही नजर आया ।
सुना था लबों से फूल झरते है
तुझे देखा तो आज मै ये जजन पाया ।
तेरी नजरो से जब भी मिली नजरे मेरी
न जाने क्यू मेरे दिल को बहुत करार आया ।
मुझे तो सक था की तुझे प्यार है मुझसे
जब भी तुने मुझे याद किया मुझको तो याकि आया ।
तेरी नजरो में मैंने जो अपना पन पाया
मै जहा भी गया कभी भी न भूल पाया ।

Sunday, August 24, 2008

तुम्हारा मन



मैंने देखा है
तुम्हारा अंतर्मन !
कितनी करुना है
तुम्हारे भावो में,
कितनी पवित्रता है
तुम्हारे विचारो में ,
कितनी कोमलता है
तुम्हारे आचरण में ,
और कितना आत्मीय है
तुम्हारा सानिध्य .

न जाने क्या -क्या सोचता हूँ मै



न जाने क्यू ?
तुम्हारे बारे में सोचना अच्छा लगता है
फिर वही पागलपन , फिर वही दीवानापन
ह्रदय को तरंगित कर गया ।
सोचता हूँ की जब तुमसे मिलूंगा
तब सब कुछ कह दूँगा तुमसे एक ही साँस में
तुम हसोगी मेरी दीवानगी पर, नादांगी पर
मेरा ह्रदय धड़क रहा होगा
तुम्हारी पलके मेरे चेहरे पर झुक रही होंगी
और न जाने क्या -क्या सोचता हूँ मै
तुम ये करोगी , तुम वो करोगी
तुम सरमाओगी ,शायद मुझसे लिपट जाओगी
मुझे गले से लगाओगी
मेरा चेहरा अपने आँचल में छुपाओगी
तुम मुझे अपने दामन से लगाओगी
कोई मधुर गीत गुनगुनाओगी
मुझे चाँद - सितारों में ले जाओगी
और न जाने क्या -क्या सोचता हूँ मै
आवारा बादलों की तरह , दीवानों की तरह
और न जाने क्या - क्या सोचता हूँ मै ..............

Monday, August 18, 2008

कैसे तुम्हें बुलाऊ


कैसे तुम्हे बुलाऊ प्रियवर
कैसे तुम्हे बुलाऊ
प्रेम भरे शब्दों में कितनी
कोमलता मै लाऊ
कैसे तुम्हे बुलाऊ प्रियवर
कैसे तुम्हे बुलाऊ
डरता हूँ कही प्रेम गीत से
कोमल मन न कुम्हालाऊ
कैसे तुम्हे बुलाऊ प्रियवर
कैसे तुम्हे बुलाऊ।
कोयल की मै कूक ना जानू
पपीहे की मै तेर ना जानू
हर धड़कन में गीत है तेरे
उन गीतों से तुम्हे बुलाऊ
कैसे तुम्हे बुलाऊ प्रियवर
कैसे तुम्हे बुलाऊ।
रूप रंग सुंदर की तुम
अमर कृति तुम अमर निशानी
प्रेम की देबी प्रेम की मूरत
तुम ही हो परियों की रानी
तुम ही ho मेरी प्रेम कहानी
ख्वाबो के स्वप्निल रंगों की
तुम्हे चुनर पहनाऊ
कैसे तुम्हे बुलाऊ प्रियवर
कैसे तुम्हे बुलाऊ।
पलकों में है ख्वाब तुम्हारे
जब भी मिलते नैन हमारे
छुई मुई सा मै शर्माऊ
दिल की बात मै दिल में छिपाऊ
तुमसे मै कुछ कह नहीं पाऊं
कैसे तुम्हे बताऊँ
कैसे तुम्हे बुलाऊ प्रियवर
कैसे तुम्हे बुलाऊ।
नेह का बंधन
स्नेह स्पंदन
जीवन को करता मै अर्पण
प्रेम का पुष्प chadaun
कैसे तुम्हे बुलाऊ प्रियवर
कैसे तुम्हे बुलाऊ...........




मै कैसे भूलूंगा



तू यदि भूल गयी तो भूले
मै कैसे भूलूंगा
तेरी याद का मधुर गीत
अब जीवन भर गाऊंगा .
अब भी याद मुझे है सब कुछ
तेरा वो शरमाना
मुझे बुलाना , मुझे मनाना
मुझको पास बिठाना ।
क्या तू भूल गयी वो सब कुछ
तू कैसे भूलेगी
तू यदि भूल गयी तो भूले
मै कैसे भूलूंगा , मै कैसे भूलूंगा ।
जीवन में यदि दर्द नहीं था
दर्द तुम्ही से पाया
जीवन में यदि नृत्य नहीं था
नृत्य तुम्ही से पाया
जीवन में यदि गीत नहीं था
गीत तुम्ही से पाया
जीवन में यदि ख्वाब नहीं था
ख्वाब तुम्ही से पाया
जीवन में यदि प्यार नहीं था
प्यार तुम्ही से पाया
तू यदि भूल गयी तो भूले
मै कैसे भूलूंगा , मै कैसे भूलूंगा ।
तेरे प्यार की मधुर स्मृतियाँ
मेरा तो यही है
जीवन भर का गीत यही है
जीवन का संगीत यही है
तू यदि भूल गयी तो भूले
मै कैसे भूलूंगा
मै कैसे भूलूंगा ....


क्यू है


सच कहूं
जो कह नहीं पता हूँ मै तुमसे
तुम हो तो जीवन है
तुम हो तो यौवन है
तुम हो तो सावन है
तुम हो तो गीत है
तुम हो तो संगीत है
तुम हो तो उत्सव है
तुम हो तो नृत्य है
तुम हो तो ख्वाब है
तुम हो तो कुछ अरमान है
तुम हो तो मै हूँ
क्यू है मुझे तुमसे इतना अनुराग
क्यू है मुझे तुमसे इतना प्यार
क्यू है .......

वो मेरी कौन थी ?


गवाह है मेरी प्रीति की रीति
मै ढूंढ़ रहा था उसे यूँ
जैसे मृग ने ढूढा है कस्तूरी
वह खुशबू थी , फिजां थी
या थी कस्तूरी ।
पल पल का साथ था उसका
पर हर पल मैंने ढूंढा उसको
वो कौन थी मेरी ?
वह मेरी प्रेरना थी , वह मेरी अर्चना थी
आखिर वो ही तो थी जिन्दगी मेरी ।
आशावो का आश था उससे
जीवन का मधुमाश था उससे
जीने का उल्लाश था उससे
खुद से बढ़कर प्यार था उससे
पर हर पल मै ढूंढ़ रहा था
पा कर भी मै ना पाया था .

माँ


दुःख के छडों में तुम बहुत याद आती हो माँ !
तुम्हारा चेहरा मेरी आखों में समां जाता है
मै महसूस करता हूँ
तुम्हार कोमल स्पर्श करुना से, स्नेह से
मेरे बालो में चलने लगता है .
पीडा के अपार छडों में
मेरा रोम रोम पुकार उठता है - माँ , माँ
जैसे मै प्रार्थना कर रहा हूँ
तब सागर से गहरा तेरा प्यार
मेरा कवच बन जाता है ,
तुम्हारी ममता का प्रसाद
मुझ पर बरसने लगता है
मेरा दर्द जैसे खोने लगता है
मै पुलकित होने लगता हूं
मुझे न जाने क्यू
तब ऐसा लगता है
जैसे मै तेरे आँचल में हूँ
तेरे आँचल में छुप कर
सारी दुनिया का गम भूल जाता हूँ
सारी ब्यथा , सारी पीडा से
मुक्त हो जाता हूँ
तेरे आँचल की पावन छाया
मेरा सौभाग्य बन जाती है
तब मेरा तन मान
जीवन की परम धन्यता का अनुभव करता है
और मेरा अंतस अब ख़ुशी से
जैसे कोई गीत गा रहा है - माँ.माँ ..........

कैसे वो पल थे


कैसे वो पल थे

कैसे थे सपने

तुम थे तो सब कुछ था

आगन में अपने ।

सब कुछ सुहाना था

क्या वो जमाना था

हर पल ख़ुशी थी

हल पल थे अपने ।

तुम थे जो संग मेरे

सपने थे झरते

झिलमिल सितारे थे

पल पल मचलते

सारी फिजाएं थी

बाँहों में मेरे

सारा गगन था

आँगन में अपने ......

भूले ना वो पल


कितनी थी बातें कहने को तुमसे
तुम कुछ कहे ना , ना हम कह पाए ,
चलना था हमको मिलकर संभलकर
दो पग चले थे फिर चल ना पाए ,
कितने सुनहरे ख्वाब थे अपने
देखा जो सपने सच कर ना पाये ,
बीत गए गर पल वो तो क्या है
मीत मेरे , तुम्हे हम भूल ना पाये,
तुम्ही बताओ कैसे मै भूलूँ
भूले न वो पल बुले भुलाये ......

Wednesday, August 6, 2008

मैं

जब भी मै लीखता हूँ
तो सोचता हूँ
की उतार इन शब्दों में
अपनी आत्मा को
पर क्या कोई समझ
पायेगा इसको
शायद बताना मुझको तुम |

Tuesday, August 5, 2008

Starting dev-poetry on Blogger

I am writing first time ever on any online blogging website. Hope people will like to read my poetry and thoughts.