Friday, October 3, 2008

तुम क्या गयीं , मै खो गया !


तुम क्या गयीं
मै खो गया
जाने मुझे क्या हो गया ।
चलता रहा
राहों पे लेकिन
फिर भी कभी मै चल ना सका ।
जीता रहा
जीवन को हर पल
फिर भी कभी मै जी ना सका ।
सोया हूँ अक्सर
रातों को लेकिन
फिर भी कभी मै सो ना सका ।
तुम क्या गयीं
मै खो गया
जाने मुझे क्या हो गया .

2 comments:

नीरज गोस्वामी said...

देव साहेब...
आज आप की तीन अक्तूबर की पोस्ट की हुई सभी छे रचनाएँ पढीं...अलग अलग रंग में रंगी सभी रचनाएँ बेहतरीन हैं और आप के विचारों से अवगत करवाती चलती हैं...आप बहुत अच्छा लिखते हैं...लिखते रहिये...
नीरज

Vishavjeet Singh said...

Ati sundar Dev bhai!! "Tum kya gayi main kho gaya, Jaane mujhe kya ho gaya" bahut khoob. Bahut hi achchha likha hai. Lagta hai dil utaar k rakh diya ho..Very nice..