Monday, August 18, 2008

माँ


दुःख के छडों में तुम बहुत याद आती हो माँ !
तुम्हारा चेहरा मेरी आखों में समां जाता है
मै महसूस करता हूँ
तुम्हार कोमल स्पर्श करुना से, स्नेह से
मेरे बालो में चलने लगता है .
पीडा के अपार छडों में
मेरा रोम रोम पुकार उठता है - माँ , माँ
जैसे मै प्रार्थना कर रहा हूँ
तब सागर से गहरा तेरा प्यार
मेरा कवच बन जाता है ,
तुम्हारी ममता का प्रसाद
मुझ पर बरसने लगता है
मेरा दर्द जैसे खोने लगता है
मै पुलकित होने लगता हूं
मुझे न जाने क्यू
तब ऐसा लगता है
जैसे मै तेरे आँचल में हूँ
तेरे आँचल में छुप कर
सारी दुनिया का गम भूल जाता हूँ
सारी ब्यथा , सारी पीडा से
मुक्त हो जाता हूँ
तेरे आँचल की पावन छाया
मेरा सौभाग्य बन जाती है
तब मेरा तन मान
जीवन की परम धन्यता का अनुभव करता है
और मेरा अंतस अब ख़ुशी से
जैसे कोई गीत गा रहा है - माँ.माँ ..........

7 comments:

Shitesh Shukla said...

Hey Devesh ,
its quite touching POEM MAn
keep on writing succh touching and soothing .........
direct hits to the EMOTIONS

PortalsBySubodh said...

its Very good yaar..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

devesh,
aapke likhe ko pahali baar padha. aapke bhav padh kar bahut achchha laga ki maa ki mahima ka varnan bahut hi bhavpurn shabdon men kiya hai.
badhai

Rani Mishra said...

maa ki mahima ka sarthak bakhan shayad shabdo me nahi ho sakta, par aapne bahut hi bhavnatmak shabd de kar maa ke sath nyay kiya hai......
maa jaisa koi nahi hai is dharti par...... maa ek anmol kriti hai prabhu ki.....
maa se hi tum ho, maa se hi hum hai,.....
maa se ye sansar hai......
maa bin kahe hamare har ishare ko samajh jati hai..........
hame bhi yahi koshish karni chahiye ki maa ki aankhon me kabhi aansoo na aaye.....

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है आप ने, बहुत ही सुन्दर भाव, मां पर हर कविता सुन्दर लगती है,
धन्यवाद

parul said...

ITS SO BEAUTIFUL POEM, TOUCHING THE HEART

Satish Saxena said...

सबसे पहला गीत सुनाया
मुझे सुलाते , अम्मा ने !
थपकी दे दे कर बहलाते
आंसू पोंछे , अम्मा ने !
सुनते सुनते निंदिया आई,आँचल से निकले थे गीत !
उन्हें आज तक भुला न पाया,बड़े मधुर थे मेरे गीत !

आज तलक वह मद्धम स्वर
कुछ याद दिलाये कानों में !
मीठी मीठी लोरी की धुन,
आज भी आये, कानों में !
आज जब कभी नींद नाआये,कौन सुनाये मुझको गीत !
काश कहीं से मना के लायें,मेरी माँ को,मेरे गीत!

मुझे याद है ,थपकी देकर,
माँ अहसास दिलाती थी !
मधुर गुनगुनाहट सुनकर
ही,आँख बंद हो जाती थी !
आज वह लोरी उनके स्वर में,कैसे गायें मेरे गीत!
कहाँ से ढूँढूँ,उन यादों को,माँ की याद दिलाते गीत!


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