Monday, August 18, 2008

वो मेरी कौन थी ?


गवाह है मेरी प्रीति की रीति
मै ढूंढ़ रहा था उसे यूँ
जैसे मृग ने ढूढा है कस्तूरी
वह खुशबू थी , फिजां थी
या थी कस्तूरी ।
पल पल का साथ था उसका
पर हर पल मैंने ढूंढा उसको
वो कौन थी मेरी ?
वह मेरी प्रेरना थी , वह मेरी अर्चना थी
आखिर वो ही तो थी जिन्दगी मेरी ।
आशावो का आश था उससे
जीवन का मधुमाश था उससे
जीने का उल्लाश था उससे
खुद से बढ़कर प्यार था उससे
पर हर पल मै ढूंढ़ रहा था
पा कर भी मै ना पाया था .

2 comments:

seema gupta said...

पर हर पल मै ढूंढ़ रहा था
पा कर भी मै ना पाया था .
" फिर वही मर्गतृष्णा का एहसास है इन पंक्तियों मे...सुंदर.."

Regards

Opal Chaudhary said...

"पर हर पल मै ढूंढ़ रहा था
पा कर भी मै ना पाया था "
Loveliest lines of the poem