Tuesday, September 23, 2008

पलकें भीग जाती है !


मैंने तुम्हे आत्मा की उन गहराइयों
से प्यार किया है जहाँ मेरा मै खो जाता है
दुनिया का कोई भी ऐश्वर्य उसे छू नही पाता है
अलौकिक आनन्द का झरना मेरे ह्रदय में फूट पड़ता है ।
तुम्हे इतनी गहराइयों से चाहा की
मेरा अहंकार न जाने कहा खो जाता है
सच कहूं मेरी आत्मा मुक्त हो जाती है
जैसे दुनिया कही खो जाती है ।
तुझे प्यार कर के मेरी आंखों से आँशू छलक जाते है
मेरी दुनिया रंगीन हो जाती है
मेरा मन उमंग से नाच उठता है
सैकड़ों जूगनू जैसे मेरे आँगन में नृत्य करने लगते है
ऐसा लगता है जैसे बसंत आ जाए
जैसे अचानक हजारों फूल खिल जाए
मेरा ह्रदय तुम्हारी खुशबू से खिल उठता है
मेरा जीवन आनन्द के फूलों से महक उठता है
मेरा जीवन एक उत्सव बन जाता है , गीत बन जाता है
मेरी आँखें झील बन जाती है और पलकें भीग जाती है ।




2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

मैंने तुम्हे आत्मा की उन गहराइयों
से प्यार किया है जहाँ मेरा मै खो जाता है

बहुत अच्छा लिखा है।

Pushpa Venkatesha Murthy said...

hey, u had said u wanted a reply to ur post DARD but i cudn't trace it here! Anyway... I'm leaving my reply here.,

Aansoo bahana toh aasaan hai,
Tum muskuraana toh seekho !
Dard ki jaam peena koi sakth kaam nai….
Uska nasha chadne se rok kar toh deekho!